हम भुलाते रहे, याद आती रही।
प्राण सुलगे तो जैसे धुआँ छा गया
नैन भींगे ज्यों प्यासा कुआँ पा गया
रोते-रोते कोई बात याद आ गई
अश्रु बहते रहे, मुस्कराती रही।
साँझ की डाल पर सुगबुगाती हवा
फिर मुझे दृष्टि भरकर किसी ने छुआ
घूमकर देखती हूँ तो कोई नहीं
मेरी परछाईं मुझको चिढ़ाती रही।
एक तस्वीर है, एक है आईना
जब भी होता किसी से मेरा सामना
मैं समझ ही न पाती कि मैं कौन हूँ
शक्ल यों उलझनों को बढ़ाती रही।
आँख रह-रह कर मेरी डबडबाती रही।
हम भुलाते रहे, याद आती रही।
~ प्रभा ठाकुर
Apr 4, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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