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Wednesday, April 5, 2017

अब भी इक उम्र पे जीने का

अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
ज़िंदगी छोड़ दे पीछा मिरा, मैं बाज़ आया

~ शाद अज़ीमाबादी


  Apr 4, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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