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Wednesday, April 5, 2017

मोहन संग खेलन चली होरी

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खेलन चली होरी गोरी मोहन संग ।
कोई लचकत कोई हचकत आवे
कोई आवत अंग मोड़ी ।
कोई सखी नाचत, कोई ताल बजावत
कोई सखी गावत होरी ।

मोहन संग खेलन चली होरी, गोरी ।
सास ननद के चोरा-चोरी,
अबहीं उमर की थोड़ी ।

कोई सखी रंग घोल-घोल के
मोहन अंग डाली बिरजवा की छोरी ।
मोहन संग खेलन चली होरी, गोरी ।
का के मुख पर तिलक बिराजे,
का के मुख पर रोड़ी ।
गोरी के मुख पर तिलक विराजे,
सवरों के मुख पर रोड़ी ।

मोहन संग खेलन चली होरी, गोरी ।
कहत रसूल मोहन बड़ा रसिया
खिलत रंग बनाई ।
भर पिचकारी जोबन पर मारे
भींजत सब अंग साड़ी ।
हंसत मुख मोड़ी ।

मोहन संग खेलन चली होरी, गोरी ।

~ रसूल


  Mar 13, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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