मोक्ष मार्ग के पथिक बनो तो
मेरी बातें सुनो ध्यान से,
जीवन–दर्शन प्राप्त किया है
मैने अपने आत्मज्ञान से।
लख चेोरासी योेनि धर कर
मानव की यह पाई काया,
फिर क्यों व्रत, उपवास करूँ मैं
इसका समाधान ना पाया।
इसलिए मैं कभी भूलकर
व्रत के पास नहीं जाता हूँ,
जिस दिन एकादश होती है
उस दिन और अधिक खाता हूँ।
क्योंकि ब्रह्म है घट के पट में
उसे तुष्ट करना ही होगा,
यह काया प्रभु का मंदिर है
उसे पुष्ट करना ही होगा।
गंगा–यमुना और त्रिवेणी
में क्यों व्यर्थ लगाते गोते,
इस वैज्ञाानिक युग मे भी
गंगाजल से पापों को धोते?
मैं अपनी कोमल काया को
किचिंत कष्ट नहीं देता हूँ,
पाप इकट्टे हो जाते तब
ड्राईक्लीन करवा लेता हूँ!
∼ काका हाथरसी
Mar 26, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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