गुलों की तरह हम ने ज़िंदगी को इस कदर जाना,
किसी कि ज़ुल्फ़ में इक रात सोना और बिखर जाना।
अगर ऐसे गए तो ज़िंदगी पर हर्फ़ आयेगा,
हवाओं से लिपटना तितलियों को चूम कर जाना।
*हर्फ़=लांछन
धुनक के रख दिया था बादलों को जिन परिंदों ने
उन्हें किसने सिखाया अपने साये से भी डर जाना
कहाँ तक ये दिया बीमार कमरे कि फ़िज़ां बदले
कभी तुम एक मुट्ठी धुप इन ताकों में भर जाना
इसी में आफिअत है घर में अपने चैन से बैठो
किसी की स्मित जाना हो तो रस्ते में उतर जाना।
*आफिअत=कुशल-मंगल, ख़ैरियत; स्मित=अस्तित्व
~ बशीर बद्र
Apr 8, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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