आख़िरी टीस आज़माने को
जी तो चाहा था मुस्कुराने को
जलने वाले तो जल बुझे आख़िर
कौन देता ख़बर ज़माने को
कितने मजबूर हो गये होंगे
अनकही बात मुँह पे लाने को
खुल के हँसना तो सब को आता है
लोग तरसते रहे इक बहाने को
रेज़ा रेज़ा बिखर गया इन्साँ
दिल की वीरानियाँ जताने को
हाथ काँटों से कर लिये ज़ख़्मी
फूल बालों में इक सजाने को
~ अदा ज़ाफ़री
Feb 17, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
जी तो चाहा था मुस्कुराने को
जलने वाले तो जल बुझे आख़िर
कौन देता ख़बर ज़माने को
कितने मजबूर हो गये होंगे
अनकही बात मुँह पे लाने को
खुल के हँसना तो सब को आता है
लोग तरसते रहे इक बहाने को
रेज़ा रेज़ा बिखर गया इन्साँ
दिल की वीरानियाँ जताने को
हाथ काँटों से कर लिये ज़ख़्मी
फूल बालों में इक सजाने को
~ अदा ज़ाफ़री
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