Disable Copy Text

Saturday, February 27, 2016

जब हमदम-ओ-हमराज़ था

जब हमदम-ओ-हमराज़ था
तब और ही अंदाज़ था
अब सोज़ है तब साज़ था
अब शर्म है तब नाज़ था

अब मुझ से हो तो हो भी क्या
है साथ वो तो वो भी क्या
इक बे-हुनर इक बे-समर
मैं और मिरी आवारगी
~ जावेद अख़्तर


~ जावेद अख़्तर


  Feb 26, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment