
सो न सकूँगा और न तुझको सोने दूँगा, हे मन बीने।
इसीलिए क्या मैंने तुझसे
साँसों के संबंध बनाए,
मैं रह-रहकर करवट लूँ तू
मुख पर डाल केश सो जाए,
रैन अँधेरी, जग जा गोरी,
माफ़ आज की हो बरजोरी
सो न सकूँगा और न तुझको सोने दूँगा, हे मन बीने।
सेज सजा सब दुनिया सोई
यह तो कोई तर्क नहीं है,
क्या मुझमें-तुझमें, दुनिया में
सच कह दे, कुछ फर्क नहीं है,
स्वार्थ-प्रपंचों के दुःस्वप्नों
में वह खोई, लेकिन मैं तो
खो न सकूँगा और न तुझको खोने दूँगा, हे मन बीने।
सो न सकूँगा और न तुझको सोने दूँगा, हे मन बीने।
~ हरिवंशराय बच्चन
Feb 06, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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