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Wednesday, February 10, 2016

बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास

बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास,
पिला यों, बढ़ती जाए प्यास
सुनेगा तू ही यदि न पुकार
मिलेगा कैसे मुझको पार!
स्वप्न मादक प्याली में आज
डुबा दे लोक-लाज, जग काज,
हुआ जीवन से सखे निराश
बाँध ले, मादक निज भुज पाश!

~ सुमित्रानंदन पंत

  Feb 09, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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