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Wednesday, February 3, 2016

आओ .... कबड्डी खेलते हैं ..



लकीरें हैं तो रहने दो
किसी ने रूठ के गुस्से में शायद खींच दी थी
इन्हीं को अब बनाओ पाला
और आओ
कबड्डी खेलते हैं
मेरे पाले में तुम आओ
मुझे ललकारो
मेरे हाथ पर तुम हाथ मारो और भागो
तुम्हें पकडूं , लपेटूँ , टांग खींचूँ
और तुम्हें वापिस न जाने दूँ
तुम्हारे पाले में जब कौडी कौडी करता जाऊँ मैं
मुझे तुम भी पकड़ लेना
मुझे छूने न देना वो सरहद की लकीरें
किसी ने गुस्से में जो खींच दी थी
उन्हीं को अब बनाओ पाला
और आओ .... कबड्डी खेलते हैं ....!

~ गुलज़ार


  Feb 02, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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