समय सफ़ेद करता है
तुम्हारी एक लट ...
तुम्हारी हथेली में लगी हुई मेंहदी को
खीच कर
उससे रंगता है तुम्हारे केश
समय तुम्हारे सर में
भरता है
समुद्र-उफ़न उठने वाला अधकपारी का दर्द
की तुम्हारा अधशीश
दक्षिण गोलार्ध हो पृथ्वी का
खनिज-समृद्ध होते हुए भी दरिद्र और संतापग्रस्त
समय,लेकिन
नीहारिका को निहारती लड़की की आँखें
नहीं मूंद पाता तुम्हारे भीतर
तुम,जो खुली क़लम लिए बैठी हो
औंजाते आँगन में
तुम,जिसकी छाती में
उतने शोकों ने बनाये बिल
जितनी ख़ुशियों ने सिरजे घोंसले
~ ज्ञानेन्द्रपति
Jul 7 , 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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