Disable Copy Text

Friday, August 4, 2017

संबंधों के महल

Image may contain: 1 person



संबंधों के महल
प्‍यार के किस्‍से ही बाकी
बेरौनक-सी चुप्‍पी
ठिठके हिस्‍से ही बाकी

यदा-कदा दीवारें ही
इसकी रो लेती हैं
धूल पलस्‍तर पर की
आँसू से धो लेती हैं
विस्‍तृत गलियारे घर
उजड़े हिस्‍से ही बाकी

पसरे सन्‍नाटों का छाया
राज अकंटक है
चहल-पहल को ओसारे ने
समझा झंझट है
आवाजाही, पंगत बैठक
किस्‍से ही बाकी

शिखर विवश है मुँह पर अपने
ताला डाल रखा
अनियंत्रित झंझाड़-झाड़
छाती में पाल रखा
बूढ़ी काया औलादों के
घिस्‍से ही बाकी

~ राजा अवस्थी

  Jul 23 , 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment