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Friday, August 4, 2017

वाणी की दीनता

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वाणी की दीनता 
अपनी मैं चीन्हता,
कहने में अर्थ नहीं
कहना पर व्यर्थ नहीं,
मिलती है कहने में
एक तल्लीनताl

वाणी की दीनता
अपनी मैं चीन्हताl

आस-पास भूलता हूँ
जग भर में झूलता हूँ,
सिन्धु के किनारे, कंकर
जैसे शिशु बीनताl
कंकर निराले नीले
लाल सतरंगी पीले,
शिशु की सजावट अपनी
शिशु की प्रवीनता l
वाणी की दीनता
अपनी मैं चीन्हता l

भीतर की आहट भर
सजती है सजावट पर,
नित्य नया कंकर क्रम
क्रम की नवीनता l
वाणी को बुनने में
कंकर के चुनने में,
कोई उत्कर्ष नहीं
कोई नहीं हीनताl
वाणी की दीनता
अपनी मैं चीन्हताl

केवल स्वभाव है
चुनने का चाव है,
जीने की क्षमता है
मरने की क्षीणताl

वाणी की दीनता
अपनी मैं चीन्हताl

~ भवानीप्रसाद मिश्र

  Jul 8 , 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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