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Friday, August 4, 2017

शमन के अंतिम चरण में

Image may contain: night and fire

शमन के अंतिम चरण में थरथराती आस क्यों हो
दीप को अपने शिखा पर प्राण का विश्वास तो हो

शांत हो जलती कभी तो संग स्पंदन के थिरकती
रात की स्याही से अपने रूप को रंग कर निखरती
देह जल कर भस्म हो उस ताप में, पर मन नहाये
अश्रु-जल की बूँद से वह पूर्ण सागर तक समाये

त्याग अंतर का अहं, हो पूर्ण अर्पण, प्यार वो हो
दीप को अपने शिखा पर प्राण का विश्वास तो हो

अंग अंग सोना बना है गहन पीड़ा में संवर कर
प्रज्ज्वलित है मन किसी आनंद अजाने से निखर कर
प्रियतमा बैठी बनी जो, प्रेम बंधन कठिन छूटे
तृषित मन की कामना है मधु की हर बूँद लूटे

मधुर उज्वल इस दिवस की राह में कोई शाम क्यों हो?
दीप को अपने शिखा पर प्राण का विश्वास तो हो

है अचेतन मन, मगर हर क्षण में उसी का ध्यान भी है
रोष है उर में मगर विश्वास का स्थान भी है
देह के सब बंधनों को तोड़ कर कोई अलक्षित
आस की इक सूक्ष्म रेखा बाँधती होकर तरंगित

पास हो या दूर हो उस साँस पर अधिकार वो हो
दीप को अपने शिखा पर प्राण का विश्वास तो हो

~ मानोशी


  Jul 24 , 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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