वक़्त अब बीत गया, बादल भी
क्या उदास रंग ले आये
देखिए कुछ हुई है आहट-सी
कौन है, तुम? चलो भले आये।
अजनबी लौट चुके द्वारे से
दर्द फिर लौटकर चले आये,
क्या अजब है पुकारिए जितना
अजनबी कौन भला आता है
एक है दर्द वही अपना है
लौट हर बार चला आता है।
अनखिले गीत सब उसी के हैं
अनकही बात भी उसी की है
अन-उगे दिन सब उसी के हैं
अन-हुई रात भी उसी की है
जीत पहले-पहल मिली थी जो
आखिरी मात भी उसी की है।
एक-सा स्वाद छोड़ जाती है
ज़िन्दगी तृप्त भी व प्यासी भी
लोग आये गये बराबर हैं
शाम गहरा गयी, उदासी भी।
~ धर्मवीर भारती
Jul 22 , 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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