हमारे घर की दीवारों में अनगिनत दरारें हैं
सुनिश्चित है कहीं बुनियाद में ग़लती हुई होगी ।
क़ुराने पाक, गीता, ग्रन्थ साहिब शीश धुनते हैं
हमारे भाव के अनुवाद में गलती हुई होगी ।
जो सब कुछ जल गया फिर राख से सीखें तो क्या सीखें,
हवा और आग के संवाद में ग़लती हुई होगी ।
हमारे पास सब कुछ है मगर दुर्भाग्य से हारे
कहीं अंदर से चिनगारी कहीं बाहर से अंगारे ।
गगन से बिजलियाँ कडकी धरा से ज़लज़ले आए
यही क्या कम हैं हम इतिहास से जीवित चले आए ।
हमारे अधबने इस नीड़ का नक्शा बताता है
कि कुछ प्रारंभ में कुछ बाद में ग़लती हुई होगी ।
~ उदयप्रताप सिंह
Aug 1 , 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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