मुक्तक - तुक्तक
तीन गुण हैं विशेष कागज़ के फूल में
एक तो वे उगते नहीं हैं कभी धूल में
दूजे झड़ते नहीं
काँटे गड़ते नहीं
तीजे, आप चाहें उन्हें लगा लें बबूल में
~ * ~
बारह बजे मिलीं जब घड़ी की दो सुइयाँ
छोटी बोली बड़ी से, 'सुनो तो मेरी गुइयाँ
कहाँ चली मुझे छोड़ ?'
बड़ी बोली भौं सिकोड़,
'आलसी का साथ कौन देगा, अरी टुइयाँ '
~ * ~
मोती ने दिए थे एक साथ सात पिल्ले
दो थे तन्दुरुस्त और दो थे मरगिल्ले
एक चितकबरा था
और एक झबरा था
सातवें की पूँछ पे थे लाल-लाल बिल्ले !
~ * ~
रास्ते में मिला जब अरोड़ा को रोड़ा
थाम के लगाम झट रोक दिया घोड़ा
उठाया जो कोड़ा
घोड़ा ने झिंझोड़ा
थोड़ा हँस छोड़ा, घोड़ा अरोड़ा ने मोड़ा !
~ * ~
टालीगंज रहते थे फूलचन्द छावड़ा
फूलों का था शौक लिये फिरते थे फावड़ा
बीज कुछ पूने के
आए थे नमूने के
माली बुलाने गए पैदल ही हावड़ा !
~ भारत भूषण अग्रवाल
Jul 9 , 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
तीन गुण हैं विशेष कागज़ के फूल में
एक तो वे उगते नहीं हैं कभी धूल में
दूजे झड़ते नहीं
काँटे गड़ते नहीं
तीजे, आप चाहें उन्हें लगा लें बबूल में
~ * ~
बारह बजे मिलीं जब घड़ी की दो सुइयाँ
छोटी बोली बड़ी से, 'सुनो तो मेरी गुइयाँ
कहाँ चली मुझे छोड़ ?'
बड़ी बोली भौं सिकोड़,
'आलसी का साथ कौन देगा, अरी टुइयाँ '
~ * ~
मोती ने दिए थे एक साथ सात पिल्ले
दो थे तन्दुरुस्त और दो थे मरगिल्ले
एक चितकबरा था
और एक झबरा था
सातवें की पूँछ पे थे लाल-लाल बिल्ले !
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रास्ते में मिला जब अरोड़ा को रोड़ा
थाम के लगाम झट रोक दिया घोड़ा
उठाया जो कोड़ा
घोड़ा ने झिंझोड़ा
थोड़ा हँस छोड़ा, घोड़ा अरोड़ा ने मोड़ा !
~ * ~
टालीगंज रहते थे फूलचन्द छावड़ा
फूलों का था शौक लिये फिरते थे फावड़ा
बीज कुछ पूने के
आए थे नमूने के
माली बुलाने गए पैदल ही हावड़ा !
~ भारत भूषण अग्रवाल
Jul 9 , 2017| e-kavya.blogspot.com
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