बिछड़ गए तो फिर भी मिलेंगे हम दोनों एक बार
या इस बसती दुनिया में या इसकी हदों से पार
लेकिन ग़म है तो बस इतना जब हम वहां मिलेंगे
एक दूसरे को हम कैसे तब पह्चान सकेंगे
यही सोचते अपनी जगह पर चुप चुप खड़े रहेंगे
इससे पहले भी हम दोनों कहीं ज़रूर मिले थे
यह पहचान के नए शगूफ़े पहले कहां खिले थे
या इस बसती दुनिया में या इसकी हदों से पार
बिछड़ गए हैं मिल कर दोनों पहले भी एक बार
~ मुनीर नियाज़ी
लेकिन ग़म है तो बस इतना जब हम वहां मिलेंगे
एक दूसरे को हम कैसे तब पह्चान सकेंगे
यही सोचते अपनी जगह पर चुप चुप खड़े रहेंगे
इससे पहले भी हम दोनों कहीं ज़रूर मिले थे
यह पहचान के नए शगूफ़े पहले कहां खिले थे
या इस बसती दुनिया में या इसकी हदों से पार
बिछड़ गए हैं मिल कर दोनों पहले भी एक बार
~ मुनीर नियाज़ी
Submitted by: Ashok Singh
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