Disable Copy Text

Saturday, August 12, 2017

दर्द जब बाँधा, उभर आया

Image may contain: 1 person, standing

दर्द जब बाँधा, उभर आया,
गीत से पहले तुम्हारा नाम।

कुल-मुलाये छंद के पंछी
छा गयी जब धूप हल्की सी,
ओढ़ युग जो सो रही बातें
लग रहीं अब आज-कल की-सी,
याद टूटे स्वप्न भर लाई
जो किये थे वक़्त ने नीलाम।

खोल दी खिड़की हवाओं ने
उम्र सी पाई व्यवधाओं ने,
व्योम भर अपनत्व दर्शाया
बाँह में भर भर दिशाओं ने,
चार मोती बो गई दृग में
रात से पहले निगोड़ी शाम।

चल रही है ज़िंदगी पथ पर
पीठ पर लादे हुये पतझर,
क्या कब दीप बुझ जाये
औ निगल जाये अंधेरा, स्वर,
कामना इतनी कि पा जाऊँ
स्वर्ग से पहले तुम्हारा धाम।

~ रमेश रंजक


 Aug 12, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment