आज भोर में दूर क्षितिज पर
शीतल-शान्त मन्त्र-मुग्ध सा
चेहरा देख पूर्ण चन्द्र का
एक भाव उठा
क्या उसने मनमीत पा लिया
या फिर प्रीति की रीति समझ ली?
या देख सभी को दुखी जगत् में
आस-त्रास का मर्म पा लिया
क्या यह एक क्षणिक तृप्ति है
या कष्ट क्लेश पर अनन्त विजय
क्या नहीं रहा भय किसी सूर्य का
किसी ग्रहण या किसी श्राप का?
देर रात्रि फिर सपने में
आ कर कुछ बोला चन्दा ने
चल अब उठ यह छोड़ बिछौने
यहाँ नहीं कोई तेरे अपने
उठ कर जब ऊपर आएगा
नभ भी नीचे रह जाएगा
अपने अन्दर सब प्रश्नों के
उत्तर भी तू पा जाएगा
~ आनन्द प्रकाश माहेश्वरी
Aug 9, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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