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Saturday, August 12, 2017

यूँ भी तिरा एहसान है

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यूँ भी तिरा एहसान है आने के लिए आ
ऐ दोस्त किसी रोज़ न जाने के लिए आ

हर-चंद नहीं शौक़ को यारा-ए-तमाशा
ख़ुद को न सही मुझ को दिखाने के लिए आ
*हर-चंद=यद्यपि; यारा-ए-तमाशा=कुछ देखने का हौसला

ये उम्र, ये बरसात, ये भीगी हुइ रातें
इन रातों को अफ़्साना बनाने के लिए आ
*अफ़्साना=कहानी

जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने
ऐसे ही बहाने से न जाने के लिए आ

माना कि मोहब्बत का छुपाना है मोहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ

तक़दीर भी मजबूर है, तदबीर भी मजबूर
इन कोहना अक़ीदे को मिटाने के लिए आ
*तदबीर=उपाय; कोहना=पुराना; अक़ीदे=विश्वास

आरिज़ पे शफ़क़, दामन-ए-मिज़्गाँ में सितारे
यूँ इश्क़ की तौक़ीर बढ़ाने के लिए आ
आरिज़=गाल; शफ़क़=लाली; दामन-ए-मिज़्गाँ=आँख की पुतलियों का निकीला किनारा

'तालिब' को ये क्या इल्म, करम है कि सितम है
जाने के लिए रूठ, मनाने के लिए आ
*इल्म=जानकारी; करम=कृपा; सितम=ज़ुल्म

~ तालिब बाग़पती


 Aug 10, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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