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Monday, June 12, 2017

वअ'दा सच्चा है कि झूटा

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वअ'दा सच्चा है कि झूटा मुझे मालूम न था
कल बदल जाएगी दुनिया मुझे मालूम न था

हुस्न है मश्ग़ला-ए-ज़ुल्म को गहरा पर्दा
पस-ए-पर्दा है अंधेरा मुझे मालूम न था 
*मश्गला=मन बहलाव; पस-ए-पर्दा=परदे के पीछे

इश्क़ वो शय है कि चरके भी मज़ा देते हैं
वर्ना क़ातिल हैं हसीं क्या मुझे मालूम न था
*चरके=घाव, चीरा

दिल की ज़िद इस लिए रख ली थी कि आ जाए क़रार
कल ये कुछ और कहेगा मुझे मालूम न था

झूटी उम्मीदों ने क्या क्या न हरे बाग़ लगाए
वक़्त झोंका है हवा का मुझे मालूम न था

जितने क़िस्मत के सहारे थे वो झूटे निकले
है बंधी मुट्ठियों में क्या मुझे मालूम न था

बरसों भटका किया और फिर भी न उन तक पहुँचा
घर तो मालूम था रस्ता मुझे मालूम न था

राज़-ए-ग़म फ़ाश न हो इस लिए रोकी थी ज़बाँ
चुप भी रह कर यही होगा मुझे मालूम न था

दिल मज़े लेता है जिस ग़म के वो है काहिश-ए-जाँ
ज़हर भी होता है मीठा मुझे मालूम न था
*काहिश=व्यग्रता

इश्क़-आबाद के नाके ही से रुख़्सत हुए होश
है ये दीवानों की दुनिया मुझे मालूम न था

होगा इमरोज़ की सूरत में ज़ुहूर-ए-फ़र्दा
वअ'दा यूँ रोज़ टलेगा मुझे मालूम न था
*इमरोज़=आज; ज़ुहूर=जो दिखाइ पड़े; फ़र्दा=कल( आने वाला)

आरज़ू हाँ भी हसीनों की नहीं होती है
इन की हर बात है धोका मुझे मालूम न था

~ आरज़ू लखनवी

  May 13, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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