सोने के दिल मिट्टी के घर पीछे छोड़ आए हैं
वो गलियाँ वो शहर के मंज़र पीछे छोड़ आए हैं
अपने आईनों को हम ने रोग लगा रक्खा है
क्या क्या चेहरे हम शीशागर पीछे छोड़ आए हैं
तुम अपने दरिया का रोना रोने आ जाते हो
हम तो अपने सात समुंदर पीछे छोड़ आए हैं
देखो हम ने अपनी जानों पर क्या ज़ुल्म किया है
फूल सा चेहरा चाँद सा पैकर पीछे छोड़ आए हैं
हम भी क्या पागल थे अपने प्यार की सारी पूँजी
उस की इक इक याद बचा कर पीछे छोड़ आए हैं
मंज़िल से अब दूर निकल आए हैं 'क़ैस' तो ख़ुश हैं
हम-साए के कुत्ते का डर पीछे छोड़ आए हैं
~ सईद क़ैस
Jun 1, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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