Disable Copy Text

Wednesday, June 21, 2017

माटी का पलंग मिला

No automatic alt text available.

माटी का पलंग मिला राख का बिछौना।
जिंदगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना।

एक ही दुकान में सजे हैं सब खिलौने।
खोटे–खरे, भले–बुरे, सांवरे सलोने।
कुछ दिन तक दिखे सभी सुंदर चमकीले।
उड़े रंग, तिरे अंग, हो गये घिनौने।
जैसे–जैसे बड़ा हुआ होता गया बौना।
जिंदगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना।

मौन को अधर मिले अधरों को वाणी।
प्राणों को पीर मिली पीर की कहानी।
मूठ बांध आये चले ले खुली हथेली।
पांव को डगर मिली वह भी आनी जानी।
मन को मिला है यायावर मृग–छौना।
जिंदगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना।

शोर भरी भोर मिली बावरी दुपहरी।
सांझ थी सयानी किंतु गूंगी और बहरी।
एक रात लाई बड़ी दूर का संदेशा।
फैसला सुनाके ख़त्म हो गई कचहरी।
औढ़ने को मिला वही दूधिया उढ़ौना।
जिंदगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना।

~ आत्म प्रकाश शुक्ल


  Jun 2, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment