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Tuesday, June 13, 2017

बन भोले क्यों भोले

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बन भोले क्यों भोले भाले कहलावें,
सब भूलें पर अपने को भूल न जावें।
क्या अब न हमें है आन बान से नाता,
क्या कभी नहीं है चोट कलेजा खाता।
क्या लहू आँख में उतर नहीं है आता,
क्या खून हमारा खौल नहीं है पाता।
क्यों पिटें लुटें मर मिटें ठोकरें खावें,
सब भूलें पर अपने को भूल न जावें।

पड़ गया हमारे लहू पर क्यों पाला,
क्यों चला रसातल गया हौसला आला।
है पड़ा हमें क्यों सूर बीर का ठाला,
क्यों गया सूरमापन का निकल दिवाला।
सोचें समझें सँभलें उमंग में आवें,
सब भूलें पर अपने को भूल न जावें।

छिन गये अछूतों के क्यों दिन दिन छीजें,
क्यों बेवों से बेहाथ हुए कर मीजें।
क्यों पास पास वालों का कर न पसीजें,
क्यों गाल आँसुओं से अपनों के भीजें।
उठ पड़ें अड़ें अकड़ें बच मान बचावें,
सब भूलें पर अपने को भूल न जावें।

क्यों तरह दिये हम जायँ बेतरह लूटे,
हीरा हो कर बन जायँ कनी क्यों फूटे।
कोई पत्थर क्यों काँच की तरह टूटे,
क्यों हम न कूट दें उसे हमें जो कूटे।
आपे में रह अपनापन को न गँवावें,
सब भूलें पर अपने को भूल न जावें।

सैकड़ों जातियों को हमने अपनाया,
लाखों लोगों को करके मेल मिलाया।
कितने रंगों पर अपना रंग चढ़ाया,
कितने संगों को मोम बना पिघलाया।
निज न्यारे गुण को गिनें गुनें अपनावें,
सब भूलें पर अपने को भूल न जावें।

सारे मत के रगड़ों झगड़ों को छोड़ें,
नाता अपना सब मतवालों से जोड़ें।
काहिली कलह कोलाहल से मुँह मोड़ें,
मिल जुल मिलाप-तरु के न्यारे फल तोड़ें।
जग जायँ सजग हो जीवन ज्योति जगावें,
सब भूलें पर अपने को भूल न जावें।

~ अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'


  May 18, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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