फिर कर लेने दो प्यार प्रिये
अब अंतर में अवसाद नहीं
चापल्य नहीं उन्माद नहीं
सूना-सूना सा जीवन है
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं,
तव स्वागत हित हिलता रहता
अंतरवीणा का तार प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये
इच्छाएँ मुझको लूट चुकी
आशाएं मुझसे छूट चुकी
सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियाँ
मेरे हाथों से टूट चुकी
खो बैठा अपने हाथों ही
मैं अपना कोष अपार प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये
~ दुष्यंत कुमार
May 17, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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