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Tuesday, June 20, 2017

एक चिरैया बोले, हौले आँगन

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एक चिरैया बोले, हौले आँगन डोले,
मन ऐसा अकुलाया, रह रह ध्यान तुम्हारा आया।

चन्दन धूप लिपा दरवाज़ा, चौक पूरी अँगनाई,
बड़े सवेरे कोयल कुहुकी, गूंज उठी शहनाई,
भोर किरण क्या फूटी, मेरी निंदिया टूटी
मन ऐसा अकुलाया, रह रह ध्यान तुम्हारा आया।

झर झर पात जहर रहे मन के, एकदम सूना सूना,
कह तो देती मन ही पर, दुःख हो जाता है दूना,
एक नज़र क्या अटकी, जाने कब तक भटकी,
मन ऐसा घबराया, रह रह ध्यान तुम्हारा आया।

सांझ घिरी बदली पावस की, कुछ उजली कुछ काली,
टप टप बूँद गिरे आँचल में, रात मोतियों वाली,
कैसा घिरा अँधेरा, सब घर आँगन घेरा,
मन ऐसा भटकाया, रह रह ध्यान तुम्हारा आया।

तन सागर तट बैठा, मन का पंथी विरह गाये,
गूंजे कोई गीत की मुझको, एक लहर छु जाये,
मेरा तन मन पार्स जीवन मधुर बरसे,
मन ऐसा भर आया, रह रह ध्यान तुम्हारा आया।

यह जाड़ो की धुप हिरनिया, खेतों खेतों डोले,
यह उजलाई हंसी चाँद की, नैनो नैनों डोले,
यह संदेश हरकारा, अब तक रहा कुंवारा,
तुमको नही पठाया, रहा रह ध्यान तुम्हारा आया।

चंदा की बारात सजी है, तारों की दीवाली,
एक बहुरिया नभ से उतरी, सोने रूपए वाली,
कैसा जाड़ो फेरा, मन भी हुआ अनेरा,
पर न कहीं कुछ पाया, रह रह ध्यान तुम्हारा आया।

फूली है फुलवारी जैसे, महके केसर प्यारी,
यह बयार दक्खिन से आई, ले अँखियाँ मतवारी,
यह फूलो का डोला, उस पर यह अनबोला,
रास न मुझको आया, रह रह ध्यान तुम्हारा आया।

∼ डॉ. वीरबाला भावसार


  May 28, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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