चाँदनी रात है जवानी भी,
कैफ़ परवर भी और सुहानी भी ।
हल्का-हल्का सरूर रहता है,
ऐश है ऐश ज़िन्दगानी भी ।
दिल किसी का हुआ, कोई दिल का,
मुख्तसर-सी है यह कहानी भी ।
दिल में उलफ़त, निगाह में शिकवे
लुत्फ़ देती है बदगुमानी भी ।
बारहा बैठकर सुना चुपचाप,
एक नग़मा है बेज़बानी भी ।
बुत-परस्ती की जो नहीं कायल
क्या जवानी है वो जवानी भी ।
इश्क़ बदनाम क्यों हुआ 'रहबर
कोई सुनता नहीं कहानी भी ।
~ हंसराज 'रहबर'
(एक वामपंथी लेखक, यह कविता 15 नवम्बर 1941, सेंट्रल जेल, संगरूर में लिखी गयी थी)
कैफ़ परवर भी और सुहानी भी ।
हल्का-हल्का सरूर रहता है,
ऐश है ऐश ज़िन्दगानी भी ।
दिल किसी का हुआ, कोई दिल का,
मुख्तसर-सी है यह कहानी भी ।
दिल में उलफ़त, निगाह में शिकवे
लुत्फ़ देती है बदगुमानी भी ।
बारहा बैठकर सुना चुपचाप,
एक नग़मा है बेज़बानी भी ।
बुत-परस्ती की जो नहीं कायल
क्या जवानी है वो जवानी भी ।
इश्क़ बदनाम क्यों हुआ 'रहबर
कोई सुनता नहीं कहानी भी ।
~ हंसराज 'रहबर'
(एक वामपंथी लेखक, यह कविता 15 नवम्बर 1941, सेंट्रल जेल, संगरूर में लिखी गयी थी)
Sep 20, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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