कहीं शांति से मुझे न रहने देगा मानव!
अकर्मण्यता मुझे, न सहने देगा मानव!
दूर वनों में सरिताओं के शीश तटों पर
सूनी छायाओं के नीचे लेट मनोहर
विहगों के स्वर मुझे न सुनने देगा मानव!
यौवन के प्रभात में पुष्पों के उपवन में
खड़ी किसी मृदु मुखी मृगी के प्रिय चिंतन में
मुझे नयन भर खड़ा न रहने देगा मानव!
शोषित-पीडि़त अत्याचार सहस्त्र सहन कर
चला जा रहा अविराम विजय के पथ पर
अकर्मण्यता मुझे, न सहने देगा मानव!
बज्रों की, भूकंपों की, उल्कापातों की
रौद्र शक्तियों से कठोर रण कर पग पग पर
मुझे शांति से कहीं न रहने देगा मानव!
ऐसे समय घाटियों में लेटे जीवन की
अकर्मण्यता मुझे, न सहने देगा मानव!
~ चंद्रकुँवर बर्त्वाल
अकर्मण्यता मुझे, न सहने देगा मानव!
दूर वनों में सरिताओं के शीश तटों पर
सूनी छायाओं के नीचे लेट मनोहर
विहगों के स्वर मुझे न सुनने देगा मानव!
यौवन के प्रभात में पुष्पों के उपवन में
खड़ी किसी मृदु मुखी मृगी के प्रिय चिंतन में
मुझे नयन भर खड़ा न रहने देगा मानव!
शोषित-पीडि़त अत्याचार सहस्त्र सहन कर
चला जा रहा अविराम विजय के पथ पर
अकर्मण्यता मुझे, न सहने देगा मानव!
बज्रों की, भूकंपों की, उल्कापातों की
रौद्र शक्तियों से कठोर रण कर पग पग पर
मुझे शांति से कहीं न रहने देगा मानव!
ऐसे समय घाटियों में लेटे जीवन की
अकर्मण्यता मुझे, न सहने देगा मानव!
~ चंद्रकुँवर बर्त्वाल
Aug 28, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment