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Saturday, September 17, 2016

कहीं शांति से मुझे न रहने दे




कहीं शांति से मुझे न रहने देगा मानव!
अकर्मण्यता मुझे, न सहने देगा मानव!

दूर वनों में सरिताओं के शीश तटों पर
सूनी छायाओं के नीचे लेट मनोहर
विहगों के स्वर मुझे न सुनने देगा मानव!

यौवन के प्रभात में पुष्पों के उपवन में
खड़ी किसी मृदु मुखी मृगी के प्रिय चिंतन में
मुझे नयन भर खड़ा न रहने देगा मानव!

शोषित-पीडि़त अत्याचार सहस्त्र सहन कर
चला जा रहा अविराम विजय के पथ पर
अकर्मण्यता मुझे, न सहने देगा मानव!

बज्रों की, भूकंपों की, उल्कापातों की
रौद्र शक्तियों से कठोर रण कर पग पग पर
मुझे शांति से कहीं न रहने देगा मानव!

ऐसे समय घाटियों में लेटे जीवन की
अकर्मण्यता मुझे, न सहने देगा मानव!

~ चंद्रकुँवर बर्त्वाल


Aug 28, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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