सबको मालूम है मैं शराबी नहीं
फिर भी कोई पिलायें तो मैं क्या करूँ
सिर्फ़ इक बार नज़रों से नज़रें मिलें
और कसम टूट जाये तो मैं क्या करूँ
मुझ को मयकश समझते हैं सब वादाकश
क्यों की उनकी तरह लड़खड़ाता हूँ मैं
मेरी रग रग में नशा मोहब्बत का है
जो समझ में ना आये तो मैं क्या करूँ
मैंने माँगी थी मस्जिदों में दुआ
मैं जिसे चाहता हूँ वो मुझको मिले
मेरा जो फ़र्ज़ था मैंने पूरा किया
अब ख़ुदा ही न चाहे तो मैं क्या करूँ
हाल सुनकर मेरा सहमे सहमे हैं वो
कोई आया है ज़ुल्फें बिखेरे हुये
मौत और ज़िंदगी दोनो हैरान हैं
दम निकलने ना पाये तो मैं क्या करूँ
कैसी लत, कैसी चाहत, कहाँ की ख़ता
बेख़ुदी में है अनवर ख़ुद ही का नशा
ज़िंदगी एक नशे के सिवा कुछ नहीं
तुमको पीना ना आये तो मैं क्या करूँ
~ अनवर फरूख़ाबादी
फिर भी कोई पिलायें तो मैं क्या करूँ
सिर्फ़ इक बार नज़रों से नज़रें मिलें
और कसम टूट जाये तो मैं क्या करूँ
मुझ को मयकश समझते हैं सब वादाकश
क्यों की उनकी तरह लड़खड़ाता हूँ मैं
मेरी रग रग में नशा मोहब्बत का है
जो समझ में ना आये तो मैं क्या करूँ
मैंने माँगी थी मस्जिदों में दुआ
मैं जिसे चाहता हूँ वो मुझको मिले
मेरा जो फ़र्ज़ था मैंने पूरा किया
अब ख़ुदा ही न चाहे तो मैं क्या करूँ
हाल सुनकर मेरा सहमे सहमे हैं वो
कोई आया है ज़ुल्फें बिखेरे हुये
मौत और ज़िंदगी दोनो हैरान हैं
दम निकलने ना पाये तो मैं क्या करूँ
कैसी लत, कैसी चाहत, कहाँ की ख़ता
बेख़ुदी में है अनवर ख़ुद ही का नशा
ज़िंदगी एक नशे के सिवा कुछ नहीं
तुमको पीना ना आये तो मैं क्या करूँ
~ अनवर फरूख़ाबादी
Sep 12, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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