Disable Copy Text

Saturday, September 17, 2016

सबको मालूम है मैं शराबी नहीं





सबको मालूम है मैं शराबी नहीं
फिर भी कोई पिलायें तो मैं क्या करूँ
सिर्फ़ इक बार नज़रों से नज़रें मिलें
और कसम टूट जाये तो मैं क्या करूँ

मुझ को मयकश समझते हैं सब वादाकश
क्यों की उनकी तरह लड़खड़ाता हूँ मैं
मेरी रग रग में नशा मोहब्बत का है
जो समझ में ना आये तो मैं क्या करूँ

मैंने माँगी थी मस्जिदों में दुआ
मैं जिसे चाहता हूँ वो मुझको मिले
मेरा जो फ़र्ज़ था मैंने पूरा किया
अब ख़ुदा ही न चाहे तो मैं क्या करूँ

हाल सुनकर मेरा सहमे सहमे हैं वो
कोई आया है ज़ुल्फें बिखेरे हुये
मौत और ज़िंदगी दोनो हैरान हैं
दम निकलने ना पाये तो मैं क्या करूँ

कैसी लत, कैसी चाहत, कहाँ की ख़ता
बेख़ुदी में है अनवर ख़ुद ही का नशा
ज़िंदगी एक नशे के सिवा कुछ नहीं
तुमको पीना ना आये तो मैं क्या करूँ

~ अनवर फरूख़ाबादी


Sep 12, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment