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Saturday, September 17, 2016

अपने होने का सुबूत और निशाँ




अपने होने का सुबूत और निशाँ छोड़ती है
रास्ता कोई नदी यूँ ही कहाँ छोड़ती है

नशे में डूबे कोई, कोई जिए, कोई मरे
तीर क्या-क्या तेरी आँखों की कमाँ छोड़ती है

ख़ुद भी खो जाती है, मिट जाती है, मर जाती है
जब कोई क़ौम कभी अपनी ज़बाँ छोड़ती है

आत्मा नाम ही रखती है न मज़हब कोई
वो तो मरती भी नहीं सिर्फ़ मकाँ छोड़ती है

एक दिन सब को चुकाना है अनासिर का हिसाब
ज़िन्दगी छोड़ भी दे मौत कहाँ छोड़ती है
*अनासिर=पंच-तत्व

मरने वालों को भी मिलते नहीं मरने वाले
मौत ले जा के ख़ुदा जाने कहाँ छोड़ती है

~ कृष्ण बिहारी नूर


Sep 1, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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