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Friday, September 16, 2016

सैंकड़ों घर फूंक कर जिसने

सैंकड़ों घर फूंक कर जिसने सजाई महफिलें
उस शमां का क्या करूँ ,उस रौशनी का क्या करूँ

बेचकर मुस्कान अपनी दर्द के बाजार में
खुद दुखी हो कर मिली जो उस ख़ुशी का क्या करूँ

है ज़माने की हवा शैतान , पानी दोगला
देवता लाऊँ कहाँ से ,आदमी का क्या करूँ

प्यार के इज़हार में बजती, तो मैं भी नाचता
जो कमानों पर चढ़ी उस बांसुरी का क्या करूँ

~ ओम प्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'



Aug 12, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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