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Saturday, September 17, 2016

कभी तो खुल के बरस अब्र-ए-मेहरबाँ



कभी तो खुल के बरस अब्र-ए-मेहरबाँ की तरह,
मेरा वजूद है जलते हुए मकाँ की तरह
*अब्र-ए-मेहरबाँ=मेहरबान बादल; वजूद=आस्तित्व

भरी बहार का सीना है ज़ख़्म ज़ख़्म मगर
सबा ने गाई हैं लोरी शफ़ीक़ मन की तरह
*सबा=हवा; शफ़ीक़=दयालु

वो कौन था जो बरहना बदन चट्टानों से
लिपट गया था कभी बह्र-ए-बेकराँ की तरह
*बरहना=नंगे; बह्र-ए-बेकराँ=अंतहीन समुद्र

सकूत-ए-दिल तो जज़ीरा है बर्फ़ का लेकिन
तेरा ख़ुलूस है सूरज के सायेबाँ की तरह
*सकूत-ए-दिल=दिल की ख़ामोशी; जज़ीरा=द्धीप, टापू; ख़ुलूस=सरलता, निष्ठां; सायेबाँ=छाया देने वाला

मैं इक ख़्वाब सही आपकी अमानत हूँ,
मुझे संभाल के रखियेगा जिस्म-ओ-जाँ की तरह

कभी तो सोच के वो शख़्स किस कदर था बुलंद,
जो बिछ गया तेरे क़दमों में आस्माँ की तरह

बुला रहा है मुझे फिर किसी बदन का बसंत,
गुज़र न जाए ये रुत भी कहीं ख़िज़ाँ की तरह
*ख़िज़ाँ=पतझड़

लहू है निस्फ़ सदी का जिस के आबगीने में
न देख 'प्रेम' उसे चश्म-ए-अर्ग़वाँ की तरह
*निस्फ़=आधा; आबगीना=बोतल; अर्ग़वाँ=एक लाल फूल; चश्म-ए-अर्ग़वाँ=लाल आँखें

~ प्रेम वरबारतोनी


Sep 5, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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