मुझे जो छू लिया तूने, नहीं कुछ होश रहता है।
कभी दिल ये सिसकता है, कभी दिल ये महकता है॥
उन पलकों की मुंडेरों पे, उतरती धूप-सा काजल,
उन निगाहों के दरीचों से फिसलते अश्क की साँकल,
इस साँकल से लिपटकर जब, तेरा काजल बिखरता है,
तेरी आँखों का हर कतरा मेरी आँखों से बहता है।
मुझे जो छू लिया तूने, नहीं कुछ होश रहता है।
मेरे चाहत के पंछी का तेरा दिल ही ठिकाना है,
उसी की शरारत तो ये धड़कन का तराना है,
मचलकर इस तराने से तेरा आँचल जो गिरता है,
बिना पीए ही सारा जिस्म थिरकता है, बहकता है।
मुझे जो छू लिया तूने, नहीं कुछ होश रहता है।
तुलसी की महक-सी तुम मेरी साँसों में बसती है,
गालिब की गजल बनकर जुबां से तुम फिसलती हो,
मैं जलता हूँ, जलूँगा, कौन किसकी फिक्र करता है,
जलने में मजा है क्या वह दिया ही समझता है।
मुझे जो छू लिया तूने, नहीं कुछ होश रहता है।
दो पाटों में नदी की सी चली है जिंदगी मेरी,
मिलन की आरजू लेकर बही है जिंदगी मेरी,
लहर को है कहाँ मालूम किनारा क्यों तरसता है,
उसी की याद में हरदम धीरे-धीरे कटता है।
मुझे जो छू लिया तूने, नहीं कुछ होश रहता है
~ अमित कुलश्रेष्ठ
कभी दिल ये सिसकता है, कभी दिल ये महकता है॥
उन पलकों की मुंडेरों पे, उतरती धूप-सा काजल,
उन निगाहों के दरीचों से फिसलते अश्क की साँकल,
इस साँकल से लिपटकर जब, तेरा काजल बिखरता है,
तेरी आँखों का हर कतरा मेरी आँखों से बहता है।
मुझे जो छू लिया तूने, नहीं कुछ होश रहता है।
मेरे चाहत के पंछी का तेरा दिल ही ठिकाना है,
उसी की शरारत तो ये धड़कन का तराना है,
मचलकर इस तराने से तेरा आँचल जो गिरता है,
बिना पीए ही सारा जिस्म थिरकता है, बहकता है।
मुझे जो छू लिया तूने, नहीं कुछ होश रहता है।
तुलसी की महक-सी तुम मेरी साँसों में बसती है,
गालिब की गजल बनकर जुबां से तुम फिसलती हो,
मैं जलता हूँ, जलूँगा, कौन किसकी फिक्र करता है,
जलने में मजा है क्या वह दिया ही समझता है।
मुझे जो छू लिया तूने, नहीं कुछ होश रहता है।
दो पाटों में नदी की सी चली है जिंदगी मेरी,
मिलन की आरजू लेकर बही है जिंदगी मेरी,
लहर को है कहाँ मालूम किनारा क्यों तरसता है,
उसी की याद में हरदम धीरे-धीरे कटता है।
मुझे जो छू लिया तूने, नहीं कुछ होश रहता है
~ अमित कुलश्रेष्ठ
Aug 23, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment