Disable Copy Text

Saturday, September 17, 2016

सत्तर सीढ़ी उमर चढ़ गयी

सत्तर सीढ़ी उमर चढ़ गयी
बचपन नहीं भुलाये भूला

झुकी कमर पर मुझे बिठाना
बाबा का घोड़ा बन जाना
अजिया का आशीष, पिता का
गंडे ताबीजें पहनाना

अम्मा के हाथों माथे का
अनखन नहीं भुलाये भूला

कागज़ की नावें तैराना
जल उछालना, नदी नहाना
माटी की दीवारें रचकर
जग से न्यारे भवन बनाना

सरकंडों, सिलकौलों वाला
छाजन नहीं भुलाये भूला
सत्तर सीढ़ी उमर चढ़ गयी
बचपन नहीं भुलाये भूला

~ शिव बहादुर सिंह भदौरिया


Sep 2, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment