सत्तर सीढ़ी उमर चढ़ गयी
बचपन नहीं भुलाये भूला
झुकी कमर पर मुझे बिठाना
बाबा का घोड़ा बन जाना
अजिया का आशीष, पिता का
गंडे ताबीजें पहनाना
अम्मा के हाथों माथे का
अनखन नहीं भुलाये भूला
कागज़ की नावें तैराना
जल उछालना, नदी नहाना
माटी की दीवारें रचकर
जग से न्यारे भवन बनाना
सरकंडों, सिलकौलों वाला
छाजन नहीं भुलाये भूला
सत्तर सीढ़ी उमर चढ़ गयी
बचपन नहीं भुलाये भूला
~ शिव बहादुर सिंह भदौरिया
Sep 2, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
बचपन नहीं भुलाये भूला
झुकी कमर पर मुझे बिठाना
बाबा का घोड़ा बन जाना
अजिया का आशीष, पिता का
गंडे ताबीजें पहनाना
अम्मा के हाथों माथे का
अनखन नहीं भुलाये भूला
कागज़ की नावें तैराना
जल उछालना, नदी नहाना
माटी की दीवारें रचकर
जग से न्यारे भवन बनाना
सरकंडों, सिलकौलों वाला
छाजन नहीं भुलाये भूला
सत्तर सीढ़ी उमर चढ़ गयी
बचपन नहीं भुलाये भूला
~ शिव बहादुर सिंह भदौरिया
Sep 2, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment