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Friday, September 23, 2016

बावरा मन देखने चला एक सपना



बावरा मन देखने चला एक सपना।

बावरे से मन की देखो बावरी हैं बातें
बावरी सी धड़कने हैं, बावरी हैं साँसें
बावरी सी करवटों से निंदिया दूर भागे
बावरे से नैन चाहे, बावरे झरोकों से, बावरे नजारों को तकना।
बावरा मन देखने चला एक सपना।।

बावरे से इस जहां मैं बावरा एक साथ हो
इस सयानी भीड़ मैं बस हाथों में तेरा हाथ हो
बावरी सी धुन हो कोई, बावरा एक राग हो
बावरे से पैर चाहें बावरें तरानों के, बावरे से बोल पे थिरकना।
बावरा मन देखने चला एक सपना।।

बावरा सा हो अंधेरा, बावरी खामोशियाँ
थरथराती लौ हो मद्धम, बावरी मदहोशियाँ
बावरी सी बंधनों मे हों, सनम की गलबाहियाँ
बावरा एक घुंघटा चाहे, हौले हौले बिन बताये, बावरे से मुखड़े से सरकना।
बावरा मन देखने चला एक सपना।।

~ स्वानन्द किरकिरे


   Sep 23, 2016  | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

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