Disable Copy Text

Saturday, September 17, 2016

मैं बज़्म-ए-तसव्वुर में उसे




मैं बज़्म-ए-तसव्वुर में उसे लाए हुए था
जो साथ न आने की क़सम खाए हुए था

दिल जुर्म-ए-मोहब्बत से कभी रह न सका बाज़
हालांकि बहुत बार सज़ा पाए हुए था

हम चाहते थे कोई सुने बात हमारी
ये शौक़ हमें घर से निकलवाए हुए था

होने न दिया ख़ुद पे मुसल्लत उसे मैं ने
जिस शख़्स को जी जान से अपनाए हुए था

बैठे थे 'शऊर' आज मेरे पास वो गुम-सुम
मैं खोए हुए था न उन्हें पाए हुए था

~ अनवर शऊर


Sep 15, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment