हारने को कुछ नहीं है पास तेरे
जीतने को सामने दुनिया पड़ी है।
जो कंटीली झाडियाँ पथ में बिछी हैं
और पर्वत सिर उठाये से खड़े हैं
ये कहाँ अवरोध, ये तो मित्र अपने
प्रेरणा देने किनारों तक अड़े हैं
ठहर कर तो क्या करेगा पास तेरे
चल पड़े तो सामने दुनिया पड़ी है।
भीड़ में पहचान कब होती किसी की
लीक से हटकर चलो तो बात है कुछ
वक़्त के आगे सभी बेबस हुए हैं
वक़्त को बेबस करो तो बात है कुछ
जिंदगी के चार पल हैं पास तेरे
झुक गए तो लूटने दुनिया खड़ी है।
गर तलाशो तो तलाशो आग अपनी
इन अलावों में कहाँ चिंगारियां हैं
पारदर्शी से बने जग-आइनों में
काटने को स्वार्थ की दो आरियाँ हैं
इस जगत का व्याकरण है पास तेरे
जांच कर पढ़ना कि ये दुनिया बड़ी है।
हारने को कुछ नहीं है पास तेरे
जीतने को सामने दुनिया पड़ी है।
~ देवेंद्र आर्य
Nov 14, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
अत्यंत सुंदर प्रेरणादायक कविता, यथार्थ चित्रण, आदरणीय देवेन्द्र आर्य जी को कोटि कोटि धन्यवाद
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