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Tuesday, November 8, 2016

वोट देते हैं टके की ओट में



नवं. 8, अमेरिका में आज राष्ट्रपति और नयी सरकार के चुनाव के लिये वोट डाले जा रेहे हैं, भारत जैसी भ्रांत परिस्थिति पाश्चात्य देशों में नहीं है, फिर भी इस अवसर पर हरिऔध जी की कविता:

वोट देते हैं टके की ओट में।
हैं सभाओं में बहुत ही ऐंठते।
कुछ उठल्लू लोग ऐसे हैं कि जो।
हैं उठाते हाथ उठते बैठते।

वोट देने से उन्हें मतलब रहा।
एतबारों को न क्यों लेवें उठा।
वे उठाते हाथ यों ही हैं सदा।
क्यों न उन पर हाथ हम देवें उठा।

वोट देने का निकम्मा ढंग हो।
है उन्हें बेआबरू करता न कम।
हैं उठाते तो उठायें हाथ वे।
क्यों उठा देवें पकड़ कर हाथ हम।

वोट की क्या चोट लगती है नहीं।
क्यों कमीने बन कमाते हैं टका।
नीचपन से जब लदा था बेतरह।
तब उठाये हाथ कैसे उठ सका।

वोट दें पर खोट से बचते रहें।
क्यों करें वह, लिम लगे जिस के किये।
जब कि ऊपर मुँह न उठ सकता रहा।
हाथ ऊपर हैं उठाते किस लिए।

~ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध'


  Nov 8, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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