धर गए मेहंदी रचे दो हाथ जल में दीप
जन्म-जन्मों ताल-सा हिलता रहा मन
बाँचते हम रह गए अंतर्कथा
स्वर्णकेशा गीत वधुओं की व्यथा
ले गया चुन कर कँवल कोई हठी युवराज
देर तक शैवाल-सा हिलता रहा मन
जंगलों का दुःख तटों की त्रासदी
भूल सुख से सो गयी कोई नदी
थक गयी लड़ती हवाओं से अभागी नाव
और झीने पाल-सा हिलता रहा मन
तुम गए क्या जग हुआ अंधा कुआँ
रेल छूटी रह गया केवल धुआँ
गुनगुनाते हम भरी आँखों फिरे सब रात
हाथ के रूमाल-सा हिलता रहा मन
धर गए मेहंदी रचे दो हाथ जल में दीप
जन्म-जन्मों ताल-सा हिलता रहा मन
~ किशन सरोज
Nov 10, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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