कहाँ चला ऐ मेरे जोगी, जीवन से तू भाग के,
किसी एक दिल के कारण यूँ सारी दुनिया त्याग के।
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए
प्यार से भी ज़रूरी कई काम हैं
प्यार सब कुछ नहीं ज़िन्दगी के लिए
तन से तन का मिलन हो न पाया तो क्या
मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं
ख़ुशबू आती रहे दूर ही से सही
सामने हो चमन कोई कम तो नहीं
चांद मिलता नहीं सबको संसार में
है दिया ही बहुत रौशनी के लिए।
कितनी हसरत से तकती हैं कलियाँ तुम्हें
क्यूँ बहारों को फिर से बुलाते नहीं
एक दुनिया उजड़ ही गई है तो क्या
दूसरा तुम जहाँ क्यूँ बसाते नहीं
दिल न चाहे भी तो, साथ संसार के
चलना पड़ता है सबकी ख़ुशी के लिए
~ इन्दीवर
Nov 24, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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