हर किसी आँख में खुमार नहीं
हर किसी रूप पर निखार नहीं
सब के आँचल तो भर नहीं देता
प्यार धनवान है उदार नहीं।
सिसकियाँ भर रहा है सन्नाटा
कोई आहट कोई पुकार नहीं
क्यों न कर लूँ मैं बन्द दरवाज़े
अब तो तेरा भी इंतजार नहीं।
पर झरोखे की राह चुपके से
चाँदनी इस तरह उतर आई
जैसे दरपन की शोख बाहों में
काँपती हो किसी कि परछाई।
मैंने चाहा कि भूल जाऊँ पर
अनदिखे हाथ ने उबार लिया
मरे माथे की सिलवटों को तभी
गीत के होंठ ने सँवार दिया।
एक नटखट अधीर बच्चे सी
कुछ बहाना बना ही लेती है
रूठिये लाख गुदगुदा के मगर
ज़िन्दगानी मना ही लेती है।
∼ बालस्वरूप राही
Nov 4, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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