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Wednesday, November 23, 2016

था तुम्हें मैंने रुलाया





हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा
हाय, मेरी कटु अनिच्छा
था बहुत मांगा न तुमने
किन्तु वह भी दे न पाया
था तुम्हें मैंने रुलाया

स्नेह का वह कण तरल था
मधु न था, न सुधा-गरल था
एक क्षण को भी सरलते
क्यों समझ तुमको न पाया
था तुम्हें मैंने रुलाया

बूंद कल की आज सागर
सोचता हूँ बैठ तट पर-
क्यों अभी तक डूब इसमें
कर न अपना अंत पाया
था तुम्हें मैंने रुलाया

~ हरिवंश राय बच्चन

  Nov 23, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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