हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा
हाय, मेरी कटु अनिच्छा
था बहुत मांगा न तुमने
किन्तु वह भी दे न पाया
था तुम्हें मैंने रुलाया
स्नेह का वह कण तरल था
मधु न था, न सुधा-गरल था
एक क्षण को भी सरलते
क्यों समझ तुमको न पाया
था तुम्हें मैंने रुलाया
बूंद कल की आज सागर
सोचता हूँ बैठ तट पर-
क्यों अभी तक डूब इसमें
कर न अपना अंत पाया
था तुम्हें मैंने रुलाया
~ हरिवंश राय बच्चन
हाय, मेरी कटु अनिच्छा
था बहुत मांगा न तुमने
किन्तु वह भी दे न पाया
था तुम्हें मैंने रुलाया
स्नेह का वह कण तरल था
मधु न था, न सुधा-गरल था
एक क्षण को भी सरलते
क्यों समझ तुमको न पाया
था तुम्हें मैंने रुलाया
बूंद कल की आज सागर
सोचता हूँ बैठ तट पर-
क्यों अभी तक डूब इसमें
कर न अपना अंत पाया
था तुम्हें मैंने रुलाया
~ हरिवंश राय बच्चन
Nov 23, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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