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Tuesday, November 22, 2016

जीवित सौ प्रतिबंध हो गए



सारी रात जागकर मन्दिर
कंचन को तन रहा बेचता
मैं जब पहुँचा दर्शन करने
तब दरवाज़े बन्द हो गए

छल को मिली अटारी सुख की
मन को मिला दर्द का आंगन
नवयुग के लोभी पंचों ने
ऐसा ही कुछ किया विभाजन
शब्दों में अभिव्यक्ति देह की
सुनती रही शौक़ से दुनिया
मेरी पीड़ा अगर गा उठे
दूषित सारे छन्द हो गए

इन वाचाल देवताओं पर
देने को केवल शरीर है
सोना ही इनका गुलाल है
लालच ही इनका अबीर है
चांदी के तारों बिन मोहक
बनता नहीं ब्याह का कंगन
कल्पित किंवदंतियों जैसे
मन-मन के संबंध हो गए

जीवन का परिवार घट रहा
और मरण का वंश बढ़ रहा
बैठा कलाकार गलियों में
अपने तन की भूख गड़ रहा
निष्ठा की नीलामी में तो
देती है सहयोग सभ्यता
मन अर्पित करना चाहा तो
जीवित सौ प्रतिबंध हो गए

~ रामावतार त्यागी

  Nov 22, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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