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Saturday, November 26, 2016

युगबोध का हस्ताक्षर हूँ



दिग्भ्रमित क्या कर सकेंगीं, भ्रांतियाँ मुझको डगर में
मैं समय के भाल पर, युगबोध का हस्ताक्षर हूँ

कर चुका हर पल समर्पित जागरण को
नींद को अब रात भर सोने न दूंगा
है अंधेरे को खुली मेरी चुनौती
रोशनी का अपहरण होने न दूंगा
जानता अच्छी तरह हूँ, आंधियों के मैं इरादे
इसलिए ही; जल रहे जो दीप उनका पक्षधर हूँ
मैं समय के भाल पर, युगबोध का हस्ताक्षर हूँ


मंज़िलों के द्वार तक लेकर गया हूँ
हार कर बैठी थकन जब भी डगर में
मान्यताएँ दें न दें मुझको समर्थन
मैं अकेला ही लड़ूंगा, वर्जनाओं के नगर में
अब घुटन की ज़िंदगी के मौन को मुखरित करूंगा
मैं धरा पर क्रांति की संभावना का एक स्वर हूँ
मैं समय के भाल पर, युगबोध का हस्ताक्षर हूँ

~ जगपाल सिंह 'सरोज'

  Nov 26, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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