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Saturday, November 19, 2016

सुब्ह को आए हो निकले शाम के


सुब्ह को आए हो निकले शाम के
जाओ भी अब तुम मिरे किस काम के

हाथा-पाई से यही मतलब भी था
कोई मुँह चूमे कलाई थाम के

तुम अगर चाहो तो कुछ मुश्किल नहीं
ढंग सौ हैं नामा-ओ-पैग़ाम के
*नामा-ओ-पैग़ाम=पत्र और संदेश

क़हर ढाएगी असीरों की तड़प
और भी उलझेंगे हल्क़े दाम के
*असीरों=कैदियों; हल्क़े=हल्क़े=ज़ंजीरें; दाम=दाम=फंदा

मोहतसिब चुन लेने दे इक इक मुझे
दिल के टुकड़े हैं ये टुकड़े जाम के
*मोहतसिब=कानून का रखवाला

लाखों धड़के इब्तिदा-ए-इश्क़ में
ध्यान हैं आग़ाज़ में अंजाम के
*इब्तिदा-ए-इश्क़=इश्क़ की शुरुआत; आगाज़=शुरू; अंजाम=अंत

मय का फ़तवा तो सही क़ाज़ी से लूँ
टोक कर रस्ते में दामन थाम के

दूर दौर-ए-मोहतसिब है आज-कल
अब कहाँ वो दौर-दौरे जाम के
*दौरे-दौरे=रोब

नाम जब उस का ज़बाँ पर आ गया
रह गया नासेह कलेजा थाम के

दूर से नाले मिरे सुन कर कहा
आ गए दुश्मन मिरे आराम के
*नाले=शिकवे, शिकायतें

हाए वो अब प्यार की बातें कहाँ
अब तो लाले हैं मुझे दुश्नाम के
*लाले=ललक; दुष्नाम=बुरा बर्ताव

वो लगाएँ क़हक़हे सुन कर 'हफ़ीज़'
आप नाले कीजिए दिल थाम के
*नाले=शिकवे, शिकायतें

~ हफ़ीज़ जौनपुरी


  Nov 19, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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