Disable Copy Text

Sunday, November 6, 2016

टुकड़े-टुकड़े हो गया आईना


टुकड़े-टुकड़े हो गया आईना गिर कर हाथ से
मेरा चेहरा अनगिनत चेहरों में बट कर रह गया
हादसा, दर हादसा, दर हादसा, दर हादसा
सारा माज़ी एक ऑंसू में सिमट कर रह गया

*माज़ी=अतीत

~मुज़फ्फर रज्मी

  Nov 6, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment