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Wednesday, January 20, 2016

दीप की लौ अभी ऊँची

दीप की लौ अभी ऊँची - अभी नीची
पवन की घन वेदना, रुक आँख मीची
अन्धकार अवंध, हो हल्का की गहरा
मुक्त कारागार में हूँ, तुम कहाँ हो!
मैं मगन मझधार में हूँ, तुम कहाँ हो!

~ जानकी बल्लभ शास्त्री

  Jan 20, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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