दीप की लौ अभी ऊँची - अभी नीची
पवन की घन वेदना, रुक आँख मीची
अन्धकार अवंध, हो हल्का की गहरा
मुक्त कारागार में हूँ, तुम कहाँ हो!
मैं मगन मझधार में हूँ, तुम कहाँ हो!
Jan 20, 2016| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
पवन की घन वेदना, रुक आँख मीची
अन्धकार अवंध, हो हल्का की गहरा
मुक्त कारागार में हूँ, तुम कहाँ हो!
मैं मगन मझधार में हूँ, तुम कहाँ हो!
~ जानकी बल्लभ शास्त्री
Jan 20, 2016| e-kavya.blogspot.com
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