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Monday, January 11, 2016

ले गया कौन गुलिस्ताँ से चुरा



ले गया कौन गुलिस्ताँ से चुरा कर खुशबू
फूल खिलते तो है पहले सी वो बू-बात नहीं

है फज़ाओं पे वही धुंध की चादर सी तनी
दिन तो निकला है मगर सुबह का एहसास नहीं

मुद्दते हो गयीं कंगाल हुआ फिरता हूँ
अब तेरी यादों की ख़ुशबू भी मेरे पास नहीं

~ कलीम उसमानी

  Jan 10, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

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