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Friday, January 15, 2016

तुम चली जाओगी, परछाइयाँ..



तुम चली जाओगी परछाइयाँ रह जाएगी
कुछ ना कुछ हुस्न की रानाइयाँ रह जाएगी
*रानाइयाँ=खूबसूरतियाँ

तुम तो इस झील के साहिल पे मिली हो मुझसे
जब भी देखूँगा यहीं मुझ को नज़र आओगी
याद मिटती है ना मंज़र कोई मिट सकता है
दूर जाकर भी तुम अपने को यहीं पाओगी
*साहिल=किनारा; मंज़र=दृश्य

घुल के रह जाएगी झोंकों में बदन की खुश्बू
ज़ुल्फ़ का अक्स घटाओं में रहेगा सदियों
फूल चुपके से चुरा लेंगे लबों की सुर्खी
ये जवां हुस्न फ़िज़ाओं में रहेगा सदियों
*अक्स=परछाईं, प्रतिबिंब

इस धड़कती हुई शादाब ओ हसीन वादी में
यह ना समझो की ज़रा देर का किस्सा हो तुम
अब हमेशा के लिए मेरे मुक़द्दर की तरह
इन नज़रों के मुक़द्दर का भी हिस्सा हो तुम
*शादाब=हराभरा, सरसब्ज

तुम चली जाओगी परछाइयाँ रह जाएगी
कुछ ना कुछ हुस्न की रानाइयाँ रह जाएगी

~ साहिर लुधियानवी


  Jan 14, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

1 comment:

  1. ..and add mesmerizing voice of Rafi:
    https://www.youtube.com/watch?v=dm9jbBrvnAk

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